परिस्थिति क्या होती है?

pristhiti paristiti kya hoti hai paristhiti ko kaise samjhe एक लाइन में परिस्थिति  paristhiti kaise badlti hai परिस्थितियाँ परिस्थिति का अर्थ


 परिस्थिति एक ऐसा शब्द जिसको हम सब जानते है, सुनते है। परिस्थिति एक ऐसी चीज है, जो सब कुछ सिखा देती है, किसी को बचपन में  ही बड़ा बना देती है तो किसी को बुढ़ापे में एक मासूम बच्चा बना देती है। परंतु परिस्थितियां हरदम एक समान नहीं रहती कभी न कभी बदल ही जाती है।

परिस्थितियां कैसे बदल जाती है आइए एक कहानी से समझते है -

एक बहुत बड़ा बगीचा था, उस बगीचे में तरह- तरह के फूल पौधे लगे थे। उन्हीं फूलो में गुलाब के फूल भी थे। गुलाब के फूल तरह - तरह के भिन्न - भिन्न रंगो के होते है।

उनमें एक गुलाब बहुत अजूबा ,बहुत विचित्र था। जो भी उधर से गुजरता उसे देखता और मोहित हो जाता। उसके सुगंध  से सराबोर हो जाता और उसका मन वहां से आगे बढ़ने  को नहीं होता। उस फूल का जरूर तारीफ करता और कहता - इतना सुंदर फूल तो मैंने आज तक कभी नहीं देखा, कितना अद्धभूत है। ये सब बात गुलाब सुनता था इस तारीफ को सुनकर गुलाब के अंदर अहंकार जगने लगा। सैयोग ही कुछ ऐसा था, की  गुलाब को लगने लगा की बस मैं,मैं और मैं। 

उसी गुलाब के पास थोड़ी दूर पर एक पत्थर का टुकड़ा पड़ा हुआ था। उधर से गुजरने वाले लोग जब गुलाब को देखने में तल्लीन हो जाते, तब वह पत्थर उनके रास्ते का ठोकड़ बन जाता कभी कभी तो उन्हे चोट भी लग जाती थी। अतः जो भी उस पत्थर को देखता मुंह बना कर आगे बढ़ जाता था। 

यह सब गुलाब रोज देखता महसूस करता और पत्थर की तुलना अपने बारे में सोचकर उसका अहंकार और बढ़ जाता। गुलाब कहता तो कुछ नहीं  पर मन ही मन उसमे यह बता आ गई की वह पत्थर और मैं गुलाब, कहाँ वह और कहा मैं।

ऐसे ही दिन बीतते गए। एक दिन उस रास्ते से एक कलाकार गुजर रहा था। उसने जब गुलाब को देखा तो वह भी उससे   प्रभावित हुआ और सयोंग से उसके साथ भी वह घटना हुई वह गुलाब देखने में इतना तल्लीन हो गया की वह भी उस पत्थर से जाकर टकरा गया लेकिन वह तो ठहरा कुशल कारीगर उसने उस पत्थर को उठाया उसी बगीचे के किनारे बैठ गया और छैनी - हथौड़ी चलाना शुरू कर दिया। छैनी - हथौड़ी चलाते - चलाते उसने उसे एक देवता का रूप से दिया। 

बगीच बड़ा था। उस बगीचे में एक देवालय था उसने उस मूर्ति को उस देवालय में स्थापित कर दिया। अब जो भी उस मंदिर में पूजा करने जाता इस नई मूर्ति की तारीफ करते थकता न था। जिस पत्थर को देखकर लोग पहले मुंह बना लेते थे। अब उसी पत्थर की लोग पूजा और फूल चढ़ाते थे।और परिस्थितियां  क्षण भर में ऐसे बदली की किसी ने उसी घमंडी  गुलाब के  फूल तोड़कर उस मूर्ति के पैरो में डाल दिया।

बात स्पष्ट है दोस्तो जो पत्थर कभी गुलाब को देखने वालो के लिए ठोकर का कारण हुआ करता था, और वही गुलाब जो उसे देखकर कभी अहंकार से भर जाता था, आज उसके चरणों में पड़ा है हुआ है जिसकी लोग पूजा करते है। 


परिथितियाँ / अवसर आपको जरूर उपलब्धियों तक पहुंचती है। अवसर मिलना न मिलना आपके बस की बात नहीं है। हमे कभी विषम परिस्थितियों से घबराना नहीं चाहिए। इस संदर्भ में हिंदी साहित्य के युगप्रवर्तक, महान साहित्यकार " आचार्य हजारी प्रसाद दिवेदी जी" ने कहा था की "'की परिस्थितियां मनुष्य को कष्ट दे सकती है, धक्का दे सकती है , पर रगड़ नहीं सकती। मनुष्य परिस्थितियों से बहुत बड़ा होता है, बशर्ते वह 'मनुष्य हो'।"'  


परिथितियाँ किसी को इतना मजबूर कर देती है की वह टूट जाता है,और किसी को इतना मजबूत की वो रिकॉर्ड तोड देता है। 

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