चाह, किसी व्यक्ति के आवश्यकता के अनुसार उसके द्वारा किसी वस्तु को पाने की इच्छा या उसके मुक्कमल होने की इस इच्छा को चाह कहते है।
इस ब्रह्माण्ड में रहले वाले हर एक प्राणी को किसी न किसी चीज या वस्तु की चाह होती है वो चीज कुछ भी हो सकती है। संसार के और जीवो के चाह के बारे में हम कुछ कह नहीं सकते पर मनुष्य/मानव जाति के चाह के बारे में कुछ कह सकते है। इस संसार में रहने वाले हर मनुष्य की चाह अलग-अलग हो सकती है जैसे- प्रेम में पड़े व्यक्ति के लिए उसके प्रेमी/ प्रेमिको को पाने की चाह, एक गरीब व्यक्ति को अमीर होने की चाह, किसी दुखियारे को सुखी होने की चाह, किसी विद्यार्थी को उसके सफल होने की चाह, किसी छोटे बच्चे को कोई अच्छा खिलौना देखकर उसे खरीदने या पाने की चाह, आदि अनेक ऐसे उदाहरण है जिनसे हम चाह के बारे में बखूबी समझ सकते है। परंतु हर किसी की चाह एक समान नहीं हो सकती। हर मनुष्य की चाह उसके सामने आए परिस्थिति और उसे पड़ने वाले आवश्यकता,जरूरत के अनुसार होती है। हर किसी की चाह अपने आप में मुक्कमल होती है।
संसार के हर मनुष्य के पास किसी न किसी चीज की चाह जरूर होती है। मनुष्य की चाह कभी खत्म नहीं होती और जो मनुष्य अपने इच्छाओं को अपने वस में कर ले वह परम ब्रह्म हो जाता है जो इस जमाने के शायद किसी के बस की बात नहीं।
कुछ लोग तो अपने चाह को पूरा करने में इतना लिन हो जाते है की उन्हें उस चाह के आलावा और कुछ दिखाई नहीं देता दूसरा कुछ सुनाई नहीं देता और दूसरा कुछ भी उन्हें महसूस ही नहीं होता और ऐसा होना भी चाहिए, ऐसे लोग जब तक अपनी चाह को पूरा नहीं कर लेते तब तक ना रुकते है न थकते और नाही आराम करते है। परंतु ये भी जरूरी नहीं की हर किसी की चाह उसे मुक्कमल हो कुछ लोग अधूरे भी रह जाते है।
पहले के लोगो के बारे में तो पता नहीं पर इस समय में कोई ऐसा प्राणी(मनुष्य) जीवित नहीं जिसे किसी न किसी चीज की चाह न हों। चलिए मान लेते है की कोई ऐसा मनुष्य है जिसे उपरोक्त में से किसी भी चीज की चाह नहीं, पर एक चीज है जिसके बिना किंचित ही किसी भी व्यक्ति की जो मूलभूत आवश्यकता(रोटी, कपड़ा, मकान)है वो कभी पूर्ण नहीं हो सकती , हम और आप इस चीज को बखूबी जानते है और इस चीज की चाह हम सब को भी होती है।
आइए इस चीज को एक कहानी से समझते है की ये चीज़ क्या है-
शाम का समय था। बाजार में बहुत भीड़ थी शायद इस दिन रोज से जायदा ही भीड़ थी। एक दुकान पर कई लोग अपना अपना सामान लेने के लिए पर्ची देकर लाइन में खड़े थे और दुकानदार समान निकाल रहा था। दुकान पर बहुत शोरगुल था। बहुत हल्ला हो रहा था। उसी में एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से कहता है की "कही से मंदिर के घंटियों के बजने की मधुर आवाज सुनाई दे रही है लगता है की संध्या
आरती चल रहल रही है और समान मिलने में अभी देर है तो चलो क्यों न हम चल कर दर्शन कर आए।
दूसरा व्यक्ति कहता है- क्या कह रहे हो बहुत शोरगुल है बहुत कोलाहल है कुछ सुनाई नहीं दे रहा तेज कहो।
पहला व्यक्ति फिर से तेज चिल्ला कर कहता है- चलो कही नजदीक से मंदिर के घंटी की आवाज आ रही है क्यों न हम लोग चल कर सांध्य आरती देख आए।
दूसरा व्यक्ति कहता है- बड़े अजीब आदमी हो भाई इतना शोरगुल है और तुम्हें मंदिर की घंटियों की आवाज सुनाई पड़ रही है! मुझे तो कुछ नहीं सुनाई पड़ रहा और मैं कहीं नहीं जाने वाला। वो पहला व्यक्ति चुप चाप आपने स्थान पर खड़ा हो जाता है। कुछ समय बाद वह पहला व्यक्ति अपने जेब से पैसा निकल रहा होता है तभी एक सिक्का उस बड़े से दुकान के फर्श पर गिर जाता है। फर्श पर सिक्का गिरते ही टनटनाहट की आवाज आती है। जैसे ही टनटनाहट की आवाज आती है सभी का ध्यान उस आवाज की ओर चला जाता है। वह दूसरा व्यक्ति और दुकान पर समान बांधने वाले दुकानदार समेत सभी व्यक्ति कहते है, देखो! किसी का सिक्का गिरा है,किसी का पैसा गिरा है।
अब कही ना कही आपके समझ में आ गया होगा की मैं किस चीज की बात कर रहा हूं। अब भी नहीं समझ नहीं आया तो चलिए मैं और बताता हूं, मंदिर की आवाज सुनाई नहीं पड़ रही है और एक छोटा सा सिक्का गिरा तो इतना कोलाहल, इतना शोरगुल, इतना उपद्रव बाद भी सबको सिक्के के गिरने की आवाज सुनाई पड़ गई। आपको पता है क्यों?
सिक्के की आवाज इस लिए सुनाई पड़ गई क्योंकि सब लोग उसी के पीछे भाग रहे हैं ।
सारी दुनिया आज पैसे के पीछे भाग रही है,और यही हमारी एक ऐसी चीज है जिसकी चाह इस संसार में हर किसी को है। यह बात हम सब पर लागू होती है।
किसी की चाह छोटी नहीं और किसी की चाह बड़ी नहीं हर किसी की चाह उसकी आवश्यकता के अनुसार उसकी जरूरत के अनुसार उसके मन मोताबित आपने आप में बड़ी होती है।
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भाई का लिख रहे हो मजा आ जा रहा है।
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