Madan mohan danish ki kuchh gajale.

जब एहसास कोई चेहरा हो जाता है, मंजर मंजर आइना हो जाता है।,
और माली चाहे कितना भी चौकन्ना हो, फूल और तितली में रिश्ता हो जाता है।
अब लगता है ठीक कहा था गालिब ने, बढ़ते बढ़ते दर्द दवा हो जाता है।
2:-दर्द सीने में छुपाए रखा, हमने माहौल बनाए रखा।
मौत आई थी कई दिन पहले, हमने उसको बातो में उलझाए रखा।
3:-जब अपनी बेकली से बेखुदी से कुछ नहीं होता, पुकारे क्यू किसी को हम किसी से कुछ नहीं होता,
कोई जब शहर से जाए तो रौनक रूठ जाती है, किसी के शहर में मौजूदगी से कुछ नहीं होता।
चमक यूंही नहीं पैदा हुई है मेरी जान तुझमें, न कहना फिर कभी तू बेरूखी से कुछ नहीं होता।
4:-और क्या आखिर तुझे जिंदगानी चाहिए, आरजू कल आग की थी आज पानी चाहिए।
ये कहा की रीत है जागे कोई सोए कोई, रात सबकी है तो सबको नींद आनी चाहिए।
क्यू जरूरी है किसी के पीछे पीछे हम चले, जब सफर अपना है तो अपनी रवानी चाहिए।
5:-जिद्दो को अपनी तरासो और उनको ख्वाब करो, फिर उसके बाद ही मंजिल का इंतखाब करो।
मोहब्बतो में नए कर्ज चढ़ते रहते है, मगर ये किसने कहा है कभी हिसाब करो।
किसी के रंग में ढालना ही है अगर "दानिश", तो अपने आप को थोड़ा बहुत खराब करो।
6:-हम आपने दुःख को गाने लग गए है, मगर इसमें जमाने लग गए है।
किसी की तर्बियत का है करिश्मा, ये आंसू मुस्कुराने लग गए है।
जिन्हे हम मंजिलों तक लेके आए, वही रस्ता बताने लग गए है।
7:-हो गए तुम फिर कही आबाद क्या, हिल गई तन्हाई की बुनियाद क्या।
अच्छी रौनक है तुम्हारी बज्म मे, आ गए सब शहर के बर्बाद क्या।
8:-नफरतो से लड़ो प्यार करते रहो, अपने होने का इजहार करते रहो।
जिंदगी से मोहब्बत करो टूट कर, मौत का काम दुस्वार करते रहो।
इतने अच्छे बनोगे तो मर जाओगे, थोड़े दुश्मन भी तैयार करते रहो।
9:-रात क्या होती है हमसे पूछिए, आप तो सोए सवेरा हो गया हो।
आज खुद को बेचने निकले थे हम, आज ही बाजार मंदा हो गया।
गम अंधेरे का नहीं दानिश मगर, वक्त से पहले अंधेरा हो गया।
10:-तुम अपने आप पर ऐसान क्यू नहीं करते, किया है इस्क तो ऐलान क्यू नहीं करते।
बस एक चिराग से बुझने से बुझ गए खुद भी, तुम आंधियों को परेशान क्यू नही करते।
सजाए फिरते हो महफिल हमेशा चांद के साथ, कभी सितारों को मेहमान क्यू नहीं करते।
11:-कमरे के जिस कोने में गुलदान रहा, वो कोना ही जाने क्यों बीरान रहा।
बीच भवर से कस्ती कैसे बच निकली, बहुत दिनों तक दरिया भी हैरान रहा।
"दानिश" जब तक इश्क का पानी नहीं लगा, दिल का पौधा बेरौनक बेजान रहा।

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