1:-दिल में एक लहर सी उठी है अभी,
कोई ताजा हवा चली है अभी।
कुछ तो नाजुक मिजाज है हम भी,
और ये चोट भी नई है अभी
सोर बर्पा है खान-ए-दिल में,
कोई दीवार सी गिरी है अभी।
भरी दुनिया में जी नहीं लगता ,
जाने किस चीज की कमी है अभी।
तू सरीक-ए-सुकन नहीं है तो क्या,
हम- सुकन तेरी खामोशी है अभी।
शहर की बेचीराग गलियों में,
जिंदगी तुझको ढूंढती है अभी।
सो गए लोग उस हवेली के,
एक खिड़की मगर खुली है अभी।
तुम तो यारो अभी से उठ बैठे,
शहर में रात जागती है अभी।
वक्त अच्छा भी आएगा "नासीर",
गम न कर जिंदगी पड़ी है अभी।
2:-वो शाहिलो पे गाने वाले क्या हुए,
वो कश्तियां जलाने वाले क्या हुए।
वो सुबहो आते- आते रह गई कहा,
जो काफिले थे आने वाले क्या हुए।
मैं उनकी राह देखता हूं रात भर,
वो रोशनी दिखाने वाले क्या हुए।
वो दिल में खुदने वाली आंखे क्या हुई,
वो होठ मुस्कुराने वाले क्या हुए।
इमारते तो जल के राख हो गई,
इमारतें बनाने वाले क्या हुए।
अकेले घर से पूछती है बेकसी,
तेरा दीया जलाने वाले क्या हुए।
ये आप हम तो बोझ है जमी का,
जमी का बोझ उठाने वाले क्या हुए।
3:-कौन इस राह से गुज़रता है,
दिल यूँ ही इंतज़ार करता है।
देख कर भी न देखने वाले,
दिल तुझे देख-देख डरता है।
शहर-ए-गुल में कटी है सारी रात,
देखिये दिन कहाँ गुज़रता है।
ध्यान की सीढ़ियों पे पिछले पहर,
कोई चुपके से पाँव धरता है।
दिल तो मेरा उदास है "नासिर",
शहर क्यों सायँ-सायँ करता है।
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नसीर काजमी