गुस्सा या क्रोध क्यों आता है।

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गुस्सा या क्रोध दोनो एक ही शब्द है। जब कोई कार्य या कोई व्यक्ति हमारे उसूलों के विपरीत चले या हमारे विपरीत कोई कार्य करे जो हमे पसंद ना हो तो उस समय हम अपने शरीर से/ मन से जो प्रतिक्रिया देते है उसे गुस्सा कहते है। क्रोध आना लाजमी है। क्रोध इस संसार में जीवित हर एक प्राणी को आता है। गुस्सा एक फिदरत है जो सबको आता है। क्रोध को ना उम्र की मर्यादा होती है और नही ज्ञान की। मानव किसी भी उम्र का हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता यदि उसके सामने परिस्थिति वैसी है तो उसे गुस्सा आना लाजमी है ठीक इसी प्रकार कोई मनुष्य कितना पड़ा लिखा है उसके पास कितना ज्ञान है इससे भी ना मात्र का ही फर्क पड़ता है, ज्ञान अर्जित किया हुआ व्यक्ति बस थोड़ा बहुत ये समझ पता है की उसे कहा गुस्सा करना चाहिए कहा नहीं और कोई फर्क नहीं पड़ता। कब, कहा और किस कारण से क्रोध पैदा हो जाए ये कोई भी जनता। किसी मनुष्य को कब और कहां क्रोध आ जाए इस बात का सटीक आकलन करना किसी के बस की बात नहीं। अधिकांसतः जब गुस्सा आता है तो मनुष्य ये नहीं समझ पता की वो गुस्से में क्या कर रहा है, उसे क्या करना चाहिए, या वो जो कर रहा वो किसके साथ कर रहा है और उसका भविष्य में उसका परिणाम क्या होगा बस यूं समझ ले की उस समय बुद्धि पर अंधकार की चढ़ जाती है चारो तरफ अंधेरा छा जाता है। कभी कभी गुस्सा आना सही होता है और उस समय गुस्सा आना भी चाहिए । जैसे- हमारे देश के वीर क्रांतिकारियों का अंग्रेजो पर गुस्सा आना लाजमी था और उस गुस्से के कारण ही आज देश आजाद है और आज हम चैन से सांस ले रहे है। परंतु अधिक्तर क्रोध बेफिजूल होता है जबकि उस गुस्से में उठाए गए कदम का परिणाम भी बुरा ही होता है। " एक बात तो आपने सुना ही होगा की क्रोध में मनुष्य खुद जल जाता है।" क्रोध क्षणिक होता परन्तु कभी- कभी इसकी कीमत हम पूरे जीवन चुकानी पड़ती है। वर्षो के अच्छे-अच्छे संबंध पल भर में टूट जाते है और संपूर्ण जीवन बिखर जाता है। जैसे मन लीजिए एक पुत्र और पिता के बीच वाद विवाद हो और बेटा अपने पिता पर खूब गुस्सा करे और यदि किसी कारण वस या कुछ सोच कर पिता को भी गुस्सा आ जाये पिता पुत्र को घर से बाहर निकाल दे तो क्या होगा उस लड़के का पूरा जीवन एक छोटे से गुस्सा के कारण बिखर कर बर्बाद हो जाएगा और इस बात की 99% गैरेंटी है की गलती लड़के में ही होगी। फिर भी हम क्रोध पर अंकुश नहीं लगा पाते। क्रोध आने के बाद हमें पछतावा तो होता है और बार बार हम क्रोध न करने का प्रण तो लेते है पर हमसे क्रोध हो ही जाता है। जब अहंकार को घाव लगता है, जब हमे कोई चीज प्राप्त नहीं होती या कोई हमे ठुकरा देता है तो उस समय क्रोध आता है। हम अनुभव से जानते है हम अतीत से जानकर सिखाकर ये बखूबी जान सकते है की क्रोध से हमे कुछ प्राप्त नहीं होता बल्कि पूर्ण रूप से हमारी हानि ही होती है। सब जानते है जानते है की सम्मान हो, संपत्ति हो, प्रेम हो या सुरक्षा हो हमे कभी क्रोध से नहीं मिलता बल्कि क्रोध से मिलता है तो सिर्फ घृणा, द्वैस, संबंध टूटना और कुछ नहीं। मनुष्य अपनी आदतों के अनुसार ही अपना जीवन व्यतीत करता रहता है और कुछ लोगो की क्रोध भी आदत बन जाती है। हमारे चाहते हुए भी हम अपने प्रति भावो को रोक नहीं पाते। हम खुद को बड़े या पुक्ता मानते है पर थोड़ा सा कारण मिलते ही हम क्रोधित हो जाते है और क्रोध में कुछ गलत कर बैठते है। क्या ये सत्य नहीं। विचार कीजिएगा।

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