पछतावा, मनुष्य किसी काम को करे और वो उस कार्य में अपना 100% न दे या वो उसकी एहमियत ना समझे तथा जब उसका परिणाम आए और उस परिणाम का असर उसके जीवन में पूर्ण रूप से गलत हो या उस परिणाम के वजह से उसे किसी चीज की हानि हो तो उस मनुष्य के मन में जो दुःख होता है उसी दुःख को पछतावा कहते है। पछतावा हर किसी को होता है। हर एक मनुष्य कुछ ना कुछ ऐसा काम कर देता है जिससे उसे पछतावा हो। जैसे- एक पिता का पुत्र जब नाखादा निकल जाए तो वो सोचता है की मैंने इसे क्यों पैदा किया उस पिता को भी उस समय पछतावा होता है, जब कोई विद्यार्थी अपने परीक्षा में कुछ ही अंको से फेल हो जाए तो उसे इस बात का पछतावा होता है की कास अच्छे से अध्ययन किया होता तो फेल न होता।
कभी कभी हमारे द्वारा उठाए गए कदम भी जब हमे दुःख देने लगे या उससे हमारे जीवन में उसका गलत असर पड़े तो उस समय भी हमे पछतावा होता है। जल्दबाजी में उठाए गए कदम अक्सर गलत होते है और उनका असर हमारी जिंदगी में खूब होता है । जैसा- जब कोई भी अपने घर के बच्चों की सादी जल्दबाजी में कर और कुछ दिनों बाद जब लड़की में खराबी होतो लड़के घर वालो को पछतावा होता है की कहा से सादी कर ली कास इससे सादी की ही न होती और ठीक इसके विपरित जब लड़के के घर वालो में खराबी हो और लड़की को परेशानी हो या उस उत्पीड़ित किया जाए तो लड़की के घर वालो को पछतावा होता वहा सादी करना ही नहीं चाहिए था, कहा से वहां सादी कर दिया। ऐसे ही अनेकों कारण है जिससे मनुष्य को पछतावा होता है।
किसी को पछतावा कब हो रहा है इस बात को पहचानने का एक सटीक उपाय ये है की जब किसी को पछतावा होता तो उसके मुख से कास या ओह शब्द जरूर निकलता है। आपने जरूर किसी न किसी को कास या ओह कहते जरूर सुना होगा।
कभी कभी तो ये पछतावा इतने हद तक बढ़ जाता है की मनुष्य को आगे सिर्फ आत्महत्या ही एक मार्ग दिखाई देता है और वो आत्म हत्या कर लेता है, या फिर कोई इतना टूट जाता है वो जिंदा लास बनकर रह जाता है। जोकि बहुत ही गलत है ऐसा कभी नहीं होन चाहिएा। इस संसार में जीवित रहने के लिए ऐसा कोई कारण नहीं जिसका निवारण नहीं। मनुष्य ने यदि संसार में जन्म लिया है तो मरना तो है लेकिन ऐसे ही बिना कुछ किए ही। पछतावा क्यों होता है? "हार" से। अर्थात् हम कोई भी काम मन से कर रहे है या बेमन से जब हमारा काम नहीं हो पाता अर्थात् हम उस काम में हर जाता है तो हमे पछतावा होता है। हमे यह बात सोचकर पछतावा टाल देना चाहिए की हम तो खड़े हुए हिम्मत की और लड़े भले ही हमे हार मिली हो दूसरो ने तो उस काम को देखकर लड़े बिना ही हार मान लिया।
इस संदर्भ में किसी शायर में एक सेर कहा है, मुझे उनका नाम मालूम नहीं खोजने की बहुत प्रयास किया। तो सेर इस प्रकार है कि,-
"गिरते है शह सवार मैदाने जंग,
वो तिस्ल क्या गिरे जो घुटनो के बाल चले।"
अतः कोई काम करे सोच समझकर करे।
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